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अस्तित्व / केदारनाथ अग्रवाल

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कुछ है
बिल्कुल कुछ है
जो मुझमें है
मेरे भीतर
मेरा है,
मगर मेरा नहीं है
बिल्कुल नहीं है
वह कुछ
न मैं हूँ
न मेरा अस्तित्व है :
मगर है
मेरे अस्तित्व में
जो मेरा अस्तित्व
परिवेश में है
और क्षण-पर-क्षण
अनस्तित्व की ओर
संक्रमणशील है

मैं न था
होने से पहले
न मैं होऊँगा
न होने के बाद
वह था मेरे होने से पहले
और होगा, मेरे न होने पर भी

मेरा होना-न होना
मेरे लिए महत्वपूर्ण हो सकता है
मैं हुआ
कि वह मुझमें हुआ
कि मैं हूँ और वह मुझमें है

मैं न हुआ होता
न वह मेरे भीतर हुआ होता
इस पर भी वह हुआ होता
बिल्कुल हुआ होता
चाहे मैं हुआ होता
या न हुआ होता
बिल्कुल न हुआ होता

मेरे होने की प्रतीति
मुझको है
उसके होने की प्रतीति मुझको है
मेरे होने की प्रतीति से मिला
उसके होने की प्रतीति है
और यह प्रतीति भिन्नता
मेरे होने से है
जो मेरे न होने से परे न होगी
मगर वह होगा-
तब भी होगा
उसका होना
मेरे होने-न-होने पर निर्भर नहीं है
पर उसके लिए नहीं
जो मुझमें है
मगर मेरा नहीं है
बिल्कुल नहीं है
क्योंकि मेरे जन्म का कारण-अस्तित्व है
जो सबके होने ना होने आदि का कारण है-
उस कुछ के होने का कारण नहीं है
जो स्वयं उस कुछ से है
मगर
बिल्कुल नहीं है
अस्तित्व उस कुछ से है
अलग, नितांत अलग
विश्व के उद्भव और विकास के लिए
दिक् और काल के प्रसार के लिए
अस्तित्व से अनस्तित्व में संक्रमण करने के लिए
नव के जन्म के लिए
शून्य से अशून्य और अशून्य से शून्य की ओर
प्रयाण करने के लिए
प्रकृति और पुरुष के विहार के लिए