भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अस जड़ जीव भजहिं नहिं स्वामी / संत जूड़ीराम
Kavita Kosh से
अस जड़ जीव भजहिं नहिं स्वामी।
रच पच रहो गहो न मारग जान-जान के भयो हरामी।
मद हंकार छको मन निस दिन आठ पहर काया को कामी।
बे आगी आग जरत है निकट वार नहिं सूझत स्वामी।
जूड़ीराम सबै धोके हैं राम नाम भज राम नमामि।