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अहले-ग़म जाते हैं नाउम्मीद तेरे शहर से / फ़राज़




अहले-ग़म <ref>दुखी लोग</ref> जाते हैं ना-उम्मीद<ref>निराश</ref> तेरे शह्र से
जब नहीं तुझसे तो क्या उम्मीद तेरे शह्र से

दीदनी<ref>दर्शनीय</ref> थी सादगी<ref>भोलापन</ref> उनकी जो रखते थे कभी
ऐ वफ़ा-ना-आश्ना<ref>वफ़ा-ना-आश्ना</ref> उम्मीद तेरे शह्र से

तेरे दीवानों के हक़ में ज़ह्रे-क़ातिल<ref>वधिक का विष</ref> हो गई
ना-उमीदी से सिवा <ref>अधिक</ref> उम्मीद तेरे शह्र से

पा-ब-जूलाँ<ref>पैरों में बेड़ियाँ डाले हुए</ref> दिल -गिरफ़्ता<ref>उदास, चिंतित</ref> फिर रहे हैं कू-ब-कू<ref>यहा वहाँ</ref>
हम जो रखते थे सिवा उम्मीद तेरे शह्र से

तू तो बेपरवा<ref>निश्चिंत</ref> ही था अब लोग भी पत्थर हुए
या हमें तुझसे थी या उम्मीद तेरे शह्र से

रास्ते क्या-क्या चमक जाते हैं ऐ जाने-‘फ़राज़’<ref>फ़राज़ के प्राण</ref>
जब भी होती है ज़रा <ref>थोड़ी-सी</ref> उम्मीद तेरे शह्र से
 

शब्दार्थ
<references/>