भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अहसास का जब आंख भर आई लिक्खी / रमेश तन्हा
Kavita Kosh से
अहसास का जब आंख भर आई लिक्खी
जब फ़िक्र की जान पर बन आई लिक्खी
विजदान ने जो बात सुझाई लिक्खी
हम ने भी रुबाई मिरे भाई लिक्खी।