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अहिंसा रोॅ अग्रदूत / भारत भाग्य विधाता / नन्दलाल यादव 'सारस्वत'

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हिंसा केरोॅ अन्धकार मेॅ बापू रहै प्रकाश सूर्य के,
अन्यायी के विकट व्यूह मेॅ नाद वहा रं तेज तूर्य के ।

सत्य-अहिंसा के उजास लै बापू यहाँ उतरलोॅ छेलै,
रेगिस्तानोॅ में जैसेॅ कि सागर नया संघरलोॅ छेलै ।

हुनकोॅ तेॅ विश्वास यहा बस अगर धरा पर कुछुवो टिकतै,
तेॅ हिंसा नै, एक अहिंसा कहिया लोगें सीख ई सिखतै ।

आजादी के बात रहौ कि अपने हित के बात रहौ,
ई अच्छा नीति नै केकरोॅ हिंसा केरोॅ साथ बहौ ।

बापू के संदेश यहा तेॅ जे हिंसा सेॅ पैलोॅ जाय छै,
ऊ कभियो थिर रहे नै पारेॅ, बोहोॅ नाँखी बहलोॅ जाय छै ।

जे कुछुवोॅ भी नर पावै छै हिंसा के ताकत पर बल सेॅ,
ऊ होनै केॅ साथ छुटै छै, की टिकलौ जे पैलोॅ छल सेॅ ।

चैराचैरी के हत्यो सौ डिगले जरोॅ नै सत्य विचार,
बड़ोॅ अहिंसा सेॅ की होतै पापी केरोॅ अत्याचार ।

ई जे अहिंसा छेकै, ऊ जै ऋषिये-मुनिये केरोॅ बल,
ई तेॅ अहिंसा सब लोगोॅ के युग-युग सेॅ छेकै संबल ।

यही अहिंसा-पथ पर चली केॅ मानव पावै रूप अनूप,
जेकरोॅ सम्मुख टिकै नै पारेॅ कोय्यो नरभक्षी नर-भूप ।

हिंसा तेॅ पशु धर्म निश्चये आरो अहिंसा धर्म नरोॅ के,
जेकरोॅ लुग छै धर्म दूसरोॅ तेॅ फेनू की बात डरोॅ के ।

बापू के ई सीख कभी की धरती पर धूमिल पड़तै,
ई तेॅ हेनोॅ एक रोशनी ऊपरे ऊपर जे चढ़तै ।

बापू नेॅ बतलैलकै सबकेॅ अर्थ अहिंसा केरोॅ सच-सच,
कायरता जे एकरा समझै ओकरा सेॅ बापू तेॅ अक्कच ।

हुनी अहिंसा केॅ समझे बस आत्मबलोॅ सेॅ कष्ट सहन ही,
वही बलोॅ सेॅ हिंसा केरोॅ क्रूर आचरण भाव दलन ही ।

यही वास्तंे बापू लेली एत्तेॅ रहै अहिंसा प्यारोॅ,
एक्के बात बतैतेॅ रहलै हिंसा सेॅ कभियो नै हारोॅ ।

यही अहिंसा मुक्ति मनुज के, यही अहिंसा नर के जय,
यही मार्ग सेॅ पावेॅ पारेॅ सब हिंसा पर जय निश्चय ।

यहा मार्ग तेॅ अन्यायी के घोर क्रूरता रोकेॅ पारेॅ,
जे अनुगामी ई पथ केरोॅ, संभव नै छै कभियो हारेॅ ।

यहा अहिंसा हिंसारोधी, बहिष्कार के ताकत लानै
असहयोग वहीं तेॅ करतै जे एकरोॅ ताकत केॅ जानै ।

तोरोॅ बात बुझी केॅ जागी उठलै सौंसे देश,
सम्राटे रं पूजित होलै लै फकीर के ऐलै भेष ।

सम्राटो के पीछू हौ रं कहाँ चलै छै सौंसे देश,
पोछै छेलै एक फकीरें सब के दुख केॅ, सबके क्लेश ।

जे फकीर केॅ कुछुवो डर नै, नै विरोध के चिन्ता ही,
ऊ तेॅ ऐलोॅ छेलै जेना भारत-भाग्य विधाता ही ।

अंगुलीमाल पर बुद्ध बनी केॅ बापू ऐलै धरती पर,
कलकल छलछल जल करुणा के बहले गेलै परती पर ।

एक निहत्था के हाथोॅ मेॅ अस्त्रा अहिंसा के अनमोल,
अमृत से कटियो टा कम नै बापू केरोॅ अमृत बोल ।