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अहो नर नीका है हरिनाम / दादू दयाल

अहो नर नीका है हरिनाम।
दूजा नहीं नाँउ बिन नीका, कहिले केवल राम॥टेक॥

निरमल सदा एक अबिनासी, अजर अकल रस ऐसा।
दृढ़ गहि राखि मूल मन माहीं, निरख देखि निज कैसा॥१॥

यह रस मीठा महा अमीरस, अमर अनूपम पीवै।
राता रहै प्रेमसूँ माता, ऐसैं जुगि जुगि जीवै॥२॥

दूजा नहीं और को ऐसा, गुर अंजन करि बूझै।
दादू मोटे भाग हमारे, दास बमेकी बूझै॥३॥