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आँकड़ों के ज़माने आए हैं / विनय कुमार
Kavita Kosh से
आँकड़ों के ज़माने आए हैं।
आप ग़ज़लें सुनाने आए हैं ?
आँकड़े में बदल रहे हैं आप
आपको यह बताने आए हैं।
आपसे रोशनी की है उम्मीद
आपका दिल जलाने आए हैं।
हम मुज़ाहिद भी हैं, सिपाही भी
हम घरौंदे बचाने आए हैं।
जंग बाक़ी है, सच निहत्था है
तेग़ उसको थमाने आए हैं।
खून लोगों का हो गया पानी
आप फिर भी बहाने आए हैं ?
कर्ज़े तहज़ीब एक दुनिया है
चार पैसे चुकाने आए हैं।