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आँखीं आरू दिलोॅ में तोंहीं विराजै छऽ / कस्तूरी झा ‘कोकिल’
Kavita Kosh से
आँखीं आरू दिलोॅ में तोंहीं विराजै छऽ,
हम्में यहाँ तड़पै छी वहाँ तों गाजै छऽ।
चर्चा में बीतै छै बड़का गो दिन
यहाँ छटपटाय छी वहाँ की साजै छऽ।
कैहिनिों निर्मोही छऽ ममता नैं लागै छौं,
पकड़ला पर सपना में बहुत दूर भागै छऽ।
कहनें रिहौं कैहियो अकेला नैं छोड़िहऽ
सब कुछ भूलैलेहऽ, बोलै नैं बाजै छऽ।
टेलीफोन करलासें प्यास बढ़ी जाय छै,
मानलोॅ की जाय छै रही-रही खाजै छऽ।
सहलोॅ नै जाय छै बिछुड़ला रऽ धाह,
दवादारू तोंहीं मतर तोंहीं खूब ताजै छऽ।
-अंगिका लोक/ जनवरी-मार्च, 2008