भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आँखों-आँखों मुस्कुराना ख़ूब है / गुलाब खंडेलवाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


आँखों-आँखों मुस्कुराना ख़ूब है!
प्यार यह हमसे छिपाना खूब है!

एक ठोकर और प्याला चूर-चूर
लौट जाने का बहाना ख़ूब है!

बेकहे आये, चले भी बेकहे
ख़ूब था आना, ये जाना ख़ूब है!

हर क़दम पर, हर घड़ी हो साथ-साथ
सामने फिर भी न आना ख़ूब है!

भूल है अपना समझ लेना गुलाब
रंग उन आँखों में, माना, ख़ूब है!