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आँखों में जिनके जल ही जल लहराता है / ओम निश्चल

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मन होता बार-बार ताल किनारे बैठें
जग के सारे बन्धन तोड़कर
पानी में तैरें हम जैसे जल के पाखी
लाज-शरम दुनिया की छोड़कर
 
देखें हम अस्ताचल को जाते सूरज को
कैसे वह हाथ हिला विदा गीत गाता है ।

साँझ सकारे झिलमिल
जीवन करता खिलखिल
जल पाखी से हिलमिल ताल याद आता है ।
सपनों-सा उन्मन भोपाल याद आता है ।

सारी सड़कें जैसे झीलों को जाती हैं
थक कर के जैसे विश्रान्ति वहीं पाती हैं
बाहों में बॉंह डाल कर सन्ध्या सुन्दरियाँ
ताल के इसी जल में डुबकियाँ लगाती हैं

इसी ताल में प्रात: सूरज मुँह धोता है
इसी ठांव मन का यह पाखी सुख पाता है ।

ऐसे भी शहर यहाँ देखने को मिलते हैं
जहाँ नहीं नदियाँ हैं, नावें हैं-झीलें हैं
एक एक बून्द को तरसती हैं चिड़ियाऍं
जल की प्रत्याशा में मण्डराती चीलें हैं

जल के इस जलसे में मन जल-सा दिखता है
आँखों में जिनके जल ही जल लहराता है ।