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आँख का मिलना-चुराना हो गया / सूरज राय 'सूरज'

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आँख का मिलना-चुराना हो गया।
लो मुहब्बत का बयाना हो गया॥

की तेरी यादों ने वह बरक़त अता
एक आँसू से खज़ाना हो गया॥

या ख़ुदा आबाद हों मरघट सदा
बेठिकानों का ठिकाना हो गया॥

अब पकड़ता ही नहीं उंगली मेरी
क्या मेरा बेटा सयाना हो गया॥

आ गए आँखों में आँसू अपने आप
क़ब्र का पत्थर ही शाना हो गया॥

रास्ते में हाल पूछा चल दिये
छोड़िये रस्में निभाना हो गया॥

कर दिया पैरों पर बेटी को खड़ा
लो मेरा गंगा नहाना हो गया॥

कहकहों के बीच खुल के रो लिये
दर्द भी दिल का छुपाना हो गया॥

एक बच्चा झोपडी में रो रहा
वो हवेली का तराना हो गया॥

बस तेरे दामन की खाई थी क़सम
और आँखों को डराना हो गया॥

धूप गर्मी आग की चिंता नहीं
अब तो "सूरज" शामियाना हो गया॥