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आँख भर आई सुरों की / राजेश शर्मा
Kavita Kosh से
आँख भर आई सुरों की,याद आई है कहानी ,
आज फिर सोने न देगा,रेत को नदिया का पानी.
आज देना ही पड़ेंगे, आँधियों को भी जवाब,
फिर सवालों पर,उतर आए,किताबों के गुलाब.
जिन गुलाबों से लिपट कर,खूब रोई रातरानी.
युग हुए पदचिन्ह धोए,फासलों के दर्द ने,
मील के पत्थर भी डूबे,काफ़िलों की गर्द में,
और चला है एक पागल,ढूंढने खोई निशानी.
बस धरे रह जाएँगे तब, बांध के छल-छंद सारे,
ये नदी बह जाएगी फिर,तोड़ कर तटबंध सारे,
जब घटाओं से गिरेगा,टूटकर बरखा का पानी.
आँख में जब तक है सागर,और अधर पर प्यास है,
साँस में सदियों से बिछुड़े,गीत का आभास है,
देखना तब तक रहेगी, बांसुरी की जिंदगानी .