भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आँख में आके बस गइल केहू / दिनेश 'भ्रमर'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आँख में आके बस गइल केहू
प्रान हमरो परस गइल केहू

हमरे लीपल-पोतल अँगनवाँ में
बन के बदरा बरस गइल केहू

गोर चनवा पे ई सॉवर अँधेरा
देखि के बा तरस गइल केहू

फूल त काँट से ना कहलस कुछ
झूठे ओकरा पे हँस गइल केहू

कंठ के जब बजल पिपिहरी तब
बीन के तार कस गइल केहू