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आँख रो जाए ये मुमकिन ही नहीं / रविंदर कुमार सोनी
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आँख रो जाए ये मुमकिन ही नहीं
दाग़ धो जाए ये मुमकिन ही नहीं
जिस को हो मालूम बंजर है ज़मीं
बीज बो जाए ये मुमकिन ही नहीं
ढूँढ़ने ख़ुद को जो निकला हो वही
राह खो जाए ये मुमकिन ही नहीं
नींद आई हो न जिस को रात भर
सुबह सो जाए ये मुमकिन ही नहीं
जो बनाया है नशेमन बरक़ ने
राख हो जाए ये मुमकिन ही नहीं
डूबने पाए न सूरज, ऐ रवि
रात हो जाए ये मुमकिन ही नहीं