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आँगन में खिले गुलाब पर जा बैठी / जाँ निसार अख़्तर

आँगन में खिले गुलाब पर जा बैठी
हल्की सी उड़ी थी उनके कदमों से जो धूल

गोरी थी कि अपने बालों में सजाने के लिये
चुपचाप से जाके तोड़ लाई वही फूल