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आँसुओं का कौन ग्राहक / राजेन्द्र वर्मा

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आँसुओं का कौन है ग्राहक यहाँ,
फिर उन्हें हम क्यों उतारें हाट में ?

हम प्रदर्शन वेदना का क्यों करें?
अश्रुओं को लोचनों में क्यों भरें?
हर कहीं आश्रय न मिलता पीर को
फिर उसे हम छोड़ दें क्यों बाट में ?

प्रेम-पथ पर जब चला कोई मनुज
देवगण भी हो गये जैसे दनुज
भाग्यशाली हम कि भीगे हैं नयन
नीर जन्मा है कभी क्या काठ में ?

नाव जीवन की थपेड़ों में रही
किन्तु धारा के चली विपरीत ही
सन्धि का प्रस्ताव ले तट भी दिखा,
हम न लंगर डाल पाये घाट में !