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आंगन नीपल गहा-गहि फूल छिड़िआओल रे / मैथिली लोकगीत

मैथिली लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

आंगन नीपल गहा-गहि फूल छिड़िआओल रे
ललना रे ताहि चढ़ि भइया निरेखू बहिन चलि आबथि रे
भानस करैत अहाँ धनि कि अहाँ ठकुराइन रे
धनी हे अबै छथिन बाबू के दलरैतिन गरम जुनि बाजब रे
आबथु ननदो गोसाउनि मांड़ब चढ़ि बैसथु रे
ललना रे दस पाँच सोहर गाबथु गाबि सुनाबथु रे
जौं हम सोहर गायब गाबि सुनाएब रे
ललना रे हमरो के किए देब दान हलसि घर जाएब रे
बहिन के देब नकबेसरि भागिन गर चेन देब रे
ललना रे बहिनोइया के चढ़न के घोड़ा हंसैत
कहाँ पायब नाक नकबेसरि कहाँ चेन पायब रे
ललना रे कहाँ पायब चढ़न के घोड़ा कनइत घर जायब रे
ननदो बहार भेली कनइते भागिन घर हंसइते रे
ललना रे बहिनोइया बहार भेल मुसकइते भने मुह तोड़ल रे
चुप रहू चुप रहू धनी कि अहूँ मोर धनी हे
धनी हे जेबइ मे बाबा के हवेलिया नकबेसरि गढ़ा देब हे