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आंधी / प्रेमजी प्रेम
Kavita Kosh से
आने वाली है एक आंधी
सावधान !
हो कर सचेत
करें मजबूत घोसलों की पकड़
पेडों के हिलने की सोचें
जब-जब भी आई है आंधी
पेडों का कुछ नहीं बिगड़ा
बार-बार आती है आंधी
उसका बैर है घोसलों से
पेड तो वे ही उख़डते है
जिनकी होती है पकड़ ढीली
पेड़ों और घोसलों की बात छोड़े
असली बात तो है-
मजबूत पकड़ की
जिसकी ढीली है पकड़
वह टूटेगा ही ।
अनुवाद : नीरज दइया