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आइना भी देखने को दिल नहीं करता / श्याम सखा 'श्याम'
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आइना भी देखने को दिल नहीं करता
अब किसी से रूठने को दिल नहीं करता
आज वो तैयार हैं सब कुछ लुटाने को
पर उन्हें यों लूटने को दिल नहीं करता
यों तो सच कहने की आदत है नहीं
झूठ उनसे बोलने को दिल नहीं करता
बेखुदी में खो गया हूँ इस कदर कुछ मैं
अब खुदी को ढूँढ़ने को दिल नहीं करता
ले चलो कश्ती भँवर में 'श्याम' तुम अपनी,
यों किनारे डूबने को दिल नहीं करता