भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आओ जलाएँ / महेन्द्र भटनागर
Kavita Kosh से
आओ जलाएँ
कलुष-कारनी कामनाएँ !
नये पूर्ण मानव बनें हम,
सकल-हीनता-मुक्त, अनुपम
आओ जगाएँ
भुवन-भाविनी भावनाएँ !
नहीं हो परस्पर विषमता,
फले व्यक्ति-स्वातंत्र्य-प्रियता
आओ मिटाएँ
दलन-दानवी-दासताएँ !
कठिन प्रति चरण हो न जीवन,
सदा हों न नभ पर प्रभंजन
आओ बहाएँ
अधम आसुरी आपदाएँ !