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आओ दीप जलाएँ / कुलवंत सिंह
Kavita Kosh से
आओ खुशी बिखराएँ, छाया जहाँ गम है।
आओ दीप जलाएँ, गहराया जहाँ तम है॥
एक किरण भी ज्योति की
आशा जगाती मन में;
एक हाथ भी कांधे पर
पुलक जगाती तन में;
आओ तान छेड़ें, खोया जहाँ सरगम है।
आओ दीप जलाएँ, गहराया जहाँ तम है॥
एक मुस्कान भी निश्छल
जीवन को देती संबल;
प्रभु पाने की चाहत
निर्बल में भर देती बल;
आओ हँसी बसाएँ, हुई आँखे जहाँ नम हैं।
आओ दीप जलाएँ, गहराया जहाँ तम है॥
स्नेह मिले जो अपनो का
जीवन बन जाता गीत;
प्यार से मीठी बोली
दुश्मन को बना दे मीत;
निर्भय करें जीवन जहाँ मनु गया सहम है।
आओ दीप जलाएँ गहराया जहाँ तम है॥