भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आओ बच्चो / दीनदयाल शर्मा
Kavita Kosh से
आओ बच्चो रेल बनाएँ ।
आगे-पीछे हम जुड़ जाएँ ।।
ईशु तम इंजन बन जाओ ।
लाली तुम पीछे चली जाओ ।।
गार्ड बन तुम काम करोगी ।
संकट में गाड़ी रोकोगी ।।
हम डिब्बे बन जाएँगे ।
छुक-छुक रेल चलाएँगे ।।