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आओ / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
Kavita Kosh से
141
आओ झगड़ें
सुलझाने को मिले
सात जनम ।
142
घर को भूले
देवालय जाकर
क्या है मिलना ।
143
बिटिया आई
गूँजी ॠचाएँ मेरे
सूने आँगन ।
144
पीर व नारी
युग -युग का रिश्ता
यही लाचारी
145
गंगा नहाना
अच्छा किसी दुखी को
गले लगाना ।
146
काशी या काबा
आँसुओं की जग में
एक ही भाषा ।