भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आकांक्षा-पूर्ति के लिए / राजकुमार कुंभज
Kavita Kosh से
ग्रीष्म की साँय-साँय दोपहर
विचार की हार और धार तलवार प्यास
किसी बहती नदी में डूब मरने का इरादा है
झरते झरने में नहाने से अब बात बनती नहीं
अकाल-इच्छा, अकाल मृत्यु
अपनी आंकाक्षा-पूर्ति के लिए दरअसल
सरकारी नल का कब तक भरोसा करूँ?
मैं तो डूब मरना चाहता हूँ बहती नदी में
बहती नदी का पता दो मुझे।