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आकाशदीप / बुद्धिनाथ मिश्र

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जलता रहता सारी रात एक आस में
मेरे आँगन का आकाशदीप ।

पीले अक्षत का दिन सो गया
और धुँआ हो गया सिवान
मौलसिरी की नन्ही डाल ने
लहरों पर किया दीपदान ।

चुगता रहता अंगार चाँदनी-उजास में
मेरे आँगन का आकाशदीप ।

मौन हुई मन्दिर की घण्टियाँ
ऊँघ रहे पूजा के बोल
मंत्र-बंधी यादों के ताल में
शेफाली शहद रही घोल ।

गढ़ता रहता तमाम रूप आसपास में
मेरे आँगन का आकाशदीप ।

तिथियों के साथ मिटी उम्र की
भीत पर टँकी उजली रेख
हँस-हँस कर नम आँखें बाँचतीं
मटमैले पत्र, शिलालेख ।

वरता रहता सलीब एक-एक साँस में
मेरे आँगन का आकाशदीप ।

रोशनी अँधेरे का महाजाल
बुनती है यह श्यामा रैन
पिंजड़े का सुआ पंख फड़फड़ा
उड़ने को अब है बेचैन ।

कसता रहता सारी रात नागफाँस में
मेरे आँगन का आकाशदीप ।