आकाश / वंशी माहेश्वरी

प्रकृति
आँख उठा कर
आकाश निहारती है

आकाशत्व में लीन आकाश
अपने नीले सपनों में
असीम दुनिया जीता है।

प्रकृति
गहरी पीड़ा की विह्वलता
स्मृतियों में फैलाकर
अपनी थकी आँखों में
लौट आती है।

मृत्यु की परिक्रमा
लगाता आकाश
प्रकृति के बिल्कुल पास आकर
अपने असह्य
अहसासों को छोड़ जाता है।

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