भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आखर री औकात, पृष्ठ- 11 / सांवर दइया
Kavita Kosh से
कांटां रो ढिग
इणी बाग में लाधै
फूलां री छाव
०००
चवड़ै-धाड़ै
पाप पोढै महलां
सीता अग्नि में
०००
पीड़ अणंत
ऐ आखर पांगळा
कांईं लिखूं?
०००
फूळो ना फोड़ो
हुक्म हाजर लाधो
शाबाशी थांनै
०००
पारकी थाळी-
घी घणो; खाली भेजो-
लागै दूजां रो
०००