भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आखर री औकात, पृष्ठ- 24 / सांवर दइया
Kavita Kosh से
कूद्यां कांई व्है
आभै छींकै लटकै
सिक्योड़ी रोटी
०००
सुपनो देख्यो
हुवै छोटो-सो घर
बुलडोजर
०००
आभो बरसै
आखो जग हरखै
म्हे ऊंधा घड़ा
०००
अठै मिनख
जाणै जूनी फाइलां
पड़ी बोरां में
०००
कित्तीक तोड़ां
आपणै बिच्चै रोज
बै चिणै भींतां
०००