भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आखर री औकात, पृष्ठ- 48 / सांवर दइया

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

काटो तो म्है’र
घर-घर ऊगो है
भूख रो घास
०००

दवा लो घणी
ताव उतर्‌यो कोनी
बैद बदळां
०००

रोवै टींगर
बजावां झुणझुणा
हंसै ई कोनी
०००

हियै कांवळा
आठूं ई पौर कैवै
हिंसा ना करो
०००

नूंवी लहरां
जुगां जूना किनारा
टूटणा नक्की
०००