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आखर री औकात, पृष्ठ- 48 / सांवर दइया
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काटो तो म्है’र
घर-घर ऊगो है
भूख रो घास
०००
दवा लो घणी
ताव उतर्यो कोनी
बैद बदळां
०००
रोवै टींगर
बजावां झुणझुणा
हंसै ई कोनी
०००
हियै कांवळा
आठूं ई पौर कैवै
हिंसा ना करो
०००
नूंवी लहरां
जुगां जूना किनारा
टूटणा नक्की
०००