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आखिरी दिन / रोहित ठाकुर

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आखिरी दिन
आखिरी दिन नहीं होता
 जैसे किसी टहनी के आखिरी
छोर पर उगता है हरापन
दिन की आखिरी छोर पर
उगता है दूसरा दिन
आज व्यस्त है शहर
शहर की रोशनी जहाँ
खत्म हो जाती है
वहाँ जंगल शुरू होता है
आज व्यस्त है जंगल भी
किसी जंगली फूल का
नामकरण है आज
जंगल से रात को लौट कर
कल सुबह शहर के
जलसे में शामिल होना है
दिन की व्यस्तता ही
एक पुल है जो जोड़ती है
 एक वर्ष को दूसरे वर्ष से