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आखिर, हमारे चाहने वाले कहाँ गए / श्रद्धा जैन

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रोशन थे आँखों में, वो उजाले कहाँ गए
आखिर, हमारे चाहने वाले कहाँ गए

रिश्ते पे देख, पड़ गया अफवाह का असर
वाबस्तगी के सारे हवाले कहाँ गए

गम दूसरों के बाँट के, खुशयां बिखेर दें
थे ऐसे कितने लोग निराले, कहाँ गए

आग़ाज़ अजनबी की तरह, हमने फिर किया
काँटे मगर दिलों से निकाले कहाँ गए

मुश्किल सफ़र ने इतना किया हौसला बुलंद
हैरत है मेरे पाँव के छाले कहाँ गए

बस शोर हो रहा था कि मोती तलाशिए
नदिया, समुद्र, झील, खंगाले कहाँ गए

“श्रद्धा” के ख़्वाब रेत के महलों की तरह थे
तूफ़ान में निशाँ भी संभाले कहाँ गए