आगत के स्वागत में नत जो / गीत गुंजन / रंजना वर्मा
आगत के स्वागत में नत जो विगत उसी के भाल की।
कथा सुनाऊँ आओ तुमको बीते गुजरे साल की॥
कितनी राह तकी आंखों ने अब तक दिल्ली दूर रे ,
मेहंदी बिंदी सजी महावर चुटकी भर सिंदूर रे।
सपने झरे गंवाया सब जीवन ढांचा डगमगा गया
हाथ हुए पीले बेटी के कर्ज चढ़ा भरपूर रे।
इस दहेज दानव ने छीनी शोभा कितने भाल की।
कथा सुनाऊँ आओ तुमको बीते गुजरे साल की॥
माँ बहने टकटकी लगाये देख रही हैं रस्ता रे
गया सदा की भांति विहंसता लेकर बोतल बस्ता रे।
बीच राह में एक खिलौना नन्हा जीवन चाट गया
आज यहाँ हो गया देख लो जीवन कितना सस्ता रे।
दे न सकी आखिरी विदाई उस ममता बेहाल की।
कथा सुनाऊँ आओ तुमको बीते गुजरे साल की॥
प्रिय ने कहा विदा दो सजनी जाता हूं परदेस रे
लाऊँगा उपहार अनोखे आऊँगा जब देश रे।
भाई बोला बहन जा रहा लेने तेरी भाभी को
कहा पिता ने बच्चों जब पहुँचो देना संदेश रे।
रेल बसों के विस्फोटो में लुटते जानो माल की।
कथा सुनाऊँ आओ तुमको बीते गुजरे साल की॥
हर घर गली नगर घुस बैठा भीषण भ्रष्टाचार रे
धरा मौन हो सहती जाती कितने अत्याचार रे।
मुट्ठी ढीली द्रुपद सुता की भरी सभा में चीर खिंची
रक्षक भक्षक बने खो गये सारे सड़ आचार रे।
खिलने से पहले मुरझायी जो उस सुरभित माल की।
आओ कथा सुनाऊँ तुम को बीते गुजरे साल की॥
दुर्घटनाएं घटीं अनेकों लाशें बिना कफ़न जलतीं
जीवन धारा कठिन क्रूर बहती है पग पग पर छलती।
चश्मे पहन स्वार्थ के कब तक हम इससे बच पायेंगे
हर क्षण तन चुकता जाता है और उमर जाती धटती।
करनी भला बताऊँ कितनी दुर्जय काल कराल की।
कथा सुनाऊँ आओ तुमको बीते गुजरे साल की॥