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आगन्तुक / आन्ना अख़्मातवा
Kavita Kosh से
बीमार
तीन माह
पड़ी रही मैं बिस्तर में
अब
भय नहीं रहा
मुझे मौत का
बहुधा मुझे लगता है
सपनों में
गो मैं हूँ अतिथि
अपनी ही देह के चौखटे में
(1959)
मूल रूसी भाषा से अनुवाद : सुधीर सक्सेना