भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आगे बसंत / भगवती लाल सेन
Kavita Kosh से
कोन गुदगुदात हवय, जीव कुलबुलात हवे
पवन सुरसूरात हवय संगी, आगे बसंत बन मतंगी
फूल गज़ब महमहाय, जिनगी बड़ कुरंतुराय,
मनभंवरा गुनगुनाय, सुरता बइहा बनाय
मोर मया बने हाय फिरंगी । आगे ।1।
डोगरी आगी बरे अस दहके, जंगल म घुंघरा गुंगवावय
परसा म टेसू मेछरावय, सोरा सिंगार फूल महमहावय
कोंवर पाना चपके नवरंगी । आगे ।2।
कोईली कुहकत हवे गोंसइया, झुमरे असरेंगे किजरैया
मौरे हय आमा अमरैया मने मन मं हसे पुरवइया
दिखे नवा नेवरिया फुरफुन्दी। आगे ।3।
भाय गज़ब नदिया अउ तरिया, अटीयावत रेंगे खरतरिया
चना गहूं सरसों हरिया, सेमी, भाँटा चरिहा चरिहा
बाजे गांव मं चिकारा सारंगी। आगे ।4।