भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आग जल रही है / केदारनाथ अग्रवाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


आग जल रही है

जंगल में प्रकाश के साथ

दोनों हम उम्र--दोनों जवान

वन के बाँस

पथ के पेड़

जल रहे इनसे

खड़े हैं


(रचनाकाल :28.08.1965)