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आग नाव में भर कर सूरज... / केदारनाथ अग्रवाल
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आग नाव में भर कर सूरज चला गया है,
आसमान के गुम्बद को जाला जकड़े है
पाँवों के नीचे धूमिल धरती उदास है ।