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आग / कुँअर रवीन्द्र

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आग है उनके पास
फिर भी वे लड़ रहे हैं
अँधेरे के ख़िलाफ़
सूरज की प्रतीक्षा किए बिना

आग है
उनके पास
फिर भी वे
ठिठुरते हुए ठण्ड से
सुलग रहे हैं
धुन्धुआते हुए
अपने ही रक्त की गर्माहट से
वे मरे भी नहीं है
क्योकि आs s s ग है
उनके पास