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आजकल / शुभा
Kavita Kosh से
लोग पॉलीथिन के थैले पैकेट और डिब्बे लिए
शॅपिंग के बाद लदे-फँदे जा रहे थे
मैं ख़ाली हाथ गुज़रती थी उस सड़क से
मेरे साथ चल रहा था एक नीम का पेड़
थोड़ा लँगड़ाता हुआ
एक शीशम चल रहा था उसकी फुग्गियाँ हिलती थीं
वह मज़े में था।
बहुत सी चिड़ियाएँ थीं और घोंसले में उनके अण्डे भी थे
चींटियाँ भूरी लकीर की तरह साथ थीं
और मेरे सामने शीशम पर चढ़े दो चींटों ने
एक दूसरे को टाँग मारी
यहाँ तक कि एक मैना ने आँख मारी एक तोते को
मेरे हाथ ख़ाली थे
एक पुराना तालाब याद आता था जिसमें देखी थी
मैंने अपनी परछाँई और एक कीकर था
जो मुझे मेरी परछाँई सहित देख रहा था
बाज़ार के बीच यह राज़ कोई नहीं जानता था