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आज़माया है समन्दर ने यहाँ आने तक / रवि सिन्हा
Kavita Kosh से
आज़माया है समन्दर ने यहाँ आने तक ।
ज़िन्दगी तैर के पहुँचा हूँ इस ठिकाने तक ।
एक क़तरा है कि दरिया में फ़ना<ref>लुप्त (expired, dissolved)</ref> हो जाए
एक क़तरा जो बहे बहर<ref>समुद्र (Ocean)</ref> तक ज़माने तक ।
इक फ़साने को हक़ीक़त में बदल देना था
इक हक़ीक़त का असर है मगर फ़साने तक ।
बेपरोबाल<ref>बिना पंख और हाथ के, निस्सहाय (without wings and feathers)</ref> नहीं थे मगर कशिश कि जुनून
रह गए हो के हदफ़<ref>निशाना (target)</ref> तीर के चल जाने तक ।
पूछते क्या हो मुझे पीरो-मुफ़क्किर<ref>बुज़ुर्ग और चिन्तक (Elderly and thinker)</ref> तो हूँ
गो मुग़न्नी<ref>गायक (Singer)</ref> भी तिरे दिल के बहल जाने तक ।
शब्दार्थ
<references/>