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आज़ादी / चंद ताज़ा गुलाब तेरे नाम / शेरजंग गर्ग

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गलियों में, सड़कों पर
मकानों में, कोठियों में
झोंपड़ियों में
राजभवनों में
दफ्तरों के सजे-बजे कमरों में
दुकानों को मालामाल करने
किसानों की जिंदगी में
वर्षा की मदभरी फुहार की तरह
मजदूरों के वर्षों से रुके हुए बोनस-सी
कितने शौक से आई थी
भोली आज़दी।

पर इसमें किसी का क्या कसूर
कोई भी व्यक्ति भला और भोला
क्यों होता है?
लोग सिर्फ अपने लिए जीते हैं,
वे अपने धर्म या मज़हब के लिए
किसी की जान ले
या किसी को जान दे
सकते हैं!
गाँधी जैसे सिरफिरे जब भी
इस मार्ग में बाधक होंगे
उनकी हत्या निश्चित है।
अब लोग गाँधी बनना नहीं चाहते
मात्र जीना चाहते हैं
अपने-अपने सत्य
अपने ही सीने में छिपाये
गरीबी कहीं-कहीं है
पर बेईमानी कहाँ नहीं है?
गोदामों में भरा पड़ा है अनाज
दुकानों में महज़ तराजू और बाट रक्खे हैं।
गलियों और बाजारों में
नंगी पीढ़ी के छोकरे
कालेज और स्कूल जाती लड़कियों पर
आवाजें़ कसने में मशगूल हैं।
नींद की गोलियाँ खाकर
दफ्तरों में सोये पड़े हैं लोग
पचास करोड़ की आबादी में
हर दूसरा आदमी नेता है।
सारा का सारा देश सजग है
हर व्यक्ति जागरूक है
अपना बैंक-बैलैंस बढ़ाने के मामले में,
लोग आजादी की परवा न करने के लिए
आज़ाद हैं।