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आजादी का सुख / रंजना जायसवाल
Kavita Kosh से
खिलखिला रहे हैं घूरे के फूल
न खाद न पानी
न ममता न दुलार
न किसी की देखभाल
फिर भी गमले के फूलों से
ज्यादा चटख हैं
घूरे के फूल
धूप हवा बारिश का
सीधा प्रहार झेलकर
कचरे से खींचकर आहार
हृष्ट-पुष्ट,मस्त
और आजाद है घूरे के फूल
जबकि मुट्ठी भर
धूप हवा पानी खाद के साथ
प्यार -दुलार से बढ़े
गमले के फूल
कुछ फीके हैं
जानते हैं वे
कभी भी तोड़ कर उन्हें
चढ़ाया जा सकता है
देवताओं को
पूरी जिंदगी जीनी है उन्हें
एक कमरे की शोभा बनकर
वे सपने में भी नहीं सोच सकते
धूप हवा बारिश में भीगने
खुलकर जीने
और अपनी आजादी के बारे में
इसलिए उदास हैं कुछ |