भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आजादी / अनिरुद्ध प्रसाद विमल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आय
आजादी के दिन छेकै
सब खुश छै-
खुश रहना भी चाहियोॅ
आय रोॅ दिन
ई देश गुलामी के अन्हरिया सें
बाहर होलोॅ छेलै

लेकिन की अन्हरिया सें
निकलला के बाद भी
हेकरोॅ नींद
टूटेॅ पारलोॅ छै ?
नै, सच्चे में नै
आजादी के जे माने होय छै
ऊ केकरौह-केकरौह छोड़ी केॅ
केकरा-केकरा मिललोॅ छै
भूख/प्यास/बिमारी
लूट-खसोट/बेकारी
जानेॅ कहिया ई सब
खतम होतै

बेवस्था चुप छै-
जेना रेनू के
लम्बा बेहोशी रहेॅ
आरो हमरोॅ देश के जनतंत्र
राजकमल के
पेट होय गेलोॅ छै ।