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आजु माड़ब मोर सोभित भेल हे / अंगिका लोकगीत

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

लड़के के जनेऊ के लिए तैयार मंडप में सोने के खंभे में हीरे-मोती लटकाये गये। जनेऊ के समय ब्रह्मचारी से कहा गया है-‘तुम मूँज का जनेऊ गिराकर पीला जनेऊ पहन लो, मृगछाला गिराकर पीतांबर पहन लो और पलास का डंडा गिराकर सोने की मूठवाली छड़ी ले लो।’
मूँज की मेखला, मृगछाला, पलाश-दंड आदि धारण करना प्राचीन काल के ब्रह्मचारी का चिह्न है। इन चीजों को पहनकर प्राचीन काल के ब्रह्मचारी-जीवन का आभास दिया जाता है।

आजु माड़ब मोर सोभित भेल हे।
सोने के खम्हा<ref>खंभा</ref> में हीरा जड़ायल, मोतियन के गुच्छा लटकायल हे।
सोने के चौकी चढ़ि बैठल से दादा हो, बरुआ<ref>वह कुमार, जिसका उपनयन हो रहा हो</ref> सब माँगै जनेऊ हे॥1॥
मूँज के जनेउआ गिराय देहो हे, पियरी जनेउआ पिन्ही<ref>पहन लो</ref> लेहो हे।
मिरगा के छाला<ref>मृगछाला</ref> गिराय देहो हे, पिन्ही लेहो पियरी पीतंबर हे॥2॥
परास<ref>पलाश का डंडा</ref> कै डंडा गिराय देहो हे, धै लेहो सोने मूठ छड़िया हे।
आजु माड़ब मोर सोभित भेल हे॥3॥

शब्दार्थ
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