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आज आनंद सागर में / रवीन्द्रनाथ ठाकुर / सिपाही सिंह ‘श्रीमंत’

आज आनंद सागर में
ज्वार आइल बा,
बइठ जा सभे पतवार पकड़ के
टान ले चलऽ नाव
टान ले चलऽ आनंद सागर में
एह ज्वार के सहारा धइले।।

बोझ ल बोझा
जतना बोझाय
लाद लऽ जतना लदाय,
दुःख से भरल नाव
आज हम पार करबे करब।
जान जाय त जाय
हम लहरन पर पवँर के
पार जइबे करब।
आज आनंद सागर में
ज्वार आइल बा।

पीछे से के पुकार रहल बा?
आगे बढ़े से मना कर रहल बा,
डर के कथा कहके
के डेरवावता?
डर के बात त सब
पहिलहीं से जानल बा।।
केकरा सराप से
कवना ग्रह-दोष से
सुख का टील्हा पर
बईठल रह जाएब हम?

ना रे ना, हम ना मानेब
हम त पाल उड़ा चुकल बानीं
पाल के रस्सी
कस के पकड़ लेले बानीं
गीत गावत चल देब हम
गीत गावत चल देलीं।
आज आनंद सागर में
ज्वार आइल बा।