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आज कल में ढल गया दिन हुआ तमाम / शैलेन्द्र
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आज कल में ढल गया, दिन हुआ तमाम
तू भी सो जा, सो गई, रंग भरी शाम
सो गया चमन चमन, सो गई कली-कली
सो गए हैं सब नगर, सो गई गली-गली
नींद कह रही है चल, मेरी बाँह थाम, तू भी ...
है बुझा-बुझा सा दिल, बोझ साँस-साँस पे
जी रहे हैं फिर भी हम, सिर्फ़ कल की आस पे
कह रही है चाँदनी, लेके तेरा नाम, तू भी ...
कौन आएगा इधर, किसकी राह देखें हम
जिनकी आहटें सुनी, जाने किसके ये कदम
अपना कोई भी नहीं, अपने तो हैं राम, तू भी ...