भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आज कहना है हमारा / रमादेवी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आज कहना है हमारा उन अमीरों के लिए।
हाथ लोहे के बने क्या दिल टटोला आपने॥

दिल भी पत्थर का बना हिलता नहीं डुलता नहीं।
मुँह से उगले आग के जलते लुकारे आपने॥

चाल चल करके खनाखन से भरी हैं कोठियाँ।
देश की क्या कम किया इतनी भलाई आपने॥

बेगुनाहों का गला घोंटा तरक्की पा गये।
जड़ दिये तारीफ़ पै सलमें सितारे आपने॥

दर्द सर होता है सुन करके गरीबों की पुकार।
शान का जौहर नहीं कब है दिखाया आपने॥

देखकर आँखों में आँसू लुत्फ आता है तुम्हें।
मुँह चले कब दिलजलों पर तर्स खाया आपने॥

पंगुलों की भीख पर तुम को हसद होता रहे।
ख़्वाब में खैरात का आँसू बहाया आपने॥

ऐश में देखा कभी कुछ कुढ़ गये लड़ भी गये।
नेकनीयत बन कभी करतब निभाया आपने॥

तंग गलियों में कभी भी आप जाते हैं नहीं।
मेंबरी के वक्त तो चक्कर लगाया आपने॥

चाल चलते कौंसिलों में आप जाने के लिए।
सर हिलाने के सिवा क्या कर दिखाया आपने॥

देश के हित के लिए एक दो कदम चलते नहीं।
घिस न जायें पांव ख़ुद पै रहम खाया आपने॥

बंद बहुएँ मर गईं पर साँस नहिं लेने दिया।
ख़ुदबख़ुद को शर्म का शानी जनाया आपने॥

जुल्म कितने हो गये इस देस में देखा 'रमा'।
किंतु बस लाली लहू को गुल है समझा आपने॥