भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आज की लड़ाई / लाल्टू

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कुछ मर्दों की दास्तान ऐसी
जैसे पहाड़ पर धब्बे
जितना ऊँचा उतना ही नंगा
जबकि ठंडक नहीं
ऊँचाई गंदे नालों की
दुर्गंध पहेली

कुछ पुरुषों की कहानी जैसे मशीन बिगड़ैल
घटिया जितनी उतना ही शोर अंग अंग
हालाँकि मशीनों के होते कुछ रंग
हाथ रखो मशीन पर तो फिसफिसाए
ठीक ठीक दबाओ बटन चले ठीक ठाक

कुछ मर्दों पर रखे हाथों पर चढ़ जाते कीड़े
उनकी लपलपाती जीभें
हाथ रखने वालों की शिराओं में घुसतीं दूर
स्थायी विनाश दिमाग की क्यारिओं का होता
इनकी संगति से

कुछ में से कुछ ओढ़ें
लबादा ज्ञान का संघर्ष का
क्या बताएँ उनकी जैसे शैतान के दूत
कहलाएँ महाऋषि होवें नीच भूत

एक लड़ाई है लड़नी
इन कुछ को स्वयं में जानने की।