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आज कुछ बात है जो ज़िद पे अड़े हैं कुत्ते / महेंद्र अग्रवाल

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आज कुछ बात है जो ज़िद पे अड़े हैं कुत्ते
जाने क्यूं अपने ही मालिक पे चढ़े हैं कुत्ते

बज़्म अदबी तो नज़ाक़त से शराफ़त से भी
उस मुहल्ले से मुहल्ले के लड़े हैं कुत्ते

ये तो अच्छा है सनद् इनको नहीं मिल पाई
वरना एल.एल.बी. एल.एल.एम. पड़े हैं कुत्ते

देर तक दूर तक आई जो यहां कुछ बदबू
ऐसा लगता है बहुत पास सड़े हैं कुत्ते

आदमी आदमी का साथ भले दे न दे
यूं वफादारी में हर मील जड़े हैं कुत्ते

यार मालिक को बचाना है, मुसीबत भारी
बांध कर पट्टा अदालत में खड़े हैं कुत्ते

वोट की चाहतें दुनिया ही बदल देती हैं
लाख दुत्कारो मगर चिकने घड़े हैं कुत्ते

गोद में उसकी रहे खेले हंसे जी भर के
आज लगता है कि आदम से बड़े हैं कुत्ते