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आज के दिन को यूँ भर जाऊँगा / नवीन जोशी
Kavita Kosh से
आज के दिन को यूँ भर जाऊँगा,
बन के इक उम्र गुज़र जाऊँगा।
सुब्ह मैं पैदा हुआ था फिर से,
और फिर रात को मर जाऊँगा।
ये सलीब और ये कीलें मुझसे,
जो निकालोगे बिखर जाऊँगा।
मंज़िलें नाम तुम्हारे कर के,
साथ मैं ले के डगर जाऊँगा।
ख़त्म मेरा ये सफ़र होगा नहीं,
रास्ते में हो तो घर जाऊँगा।
प्यास को रख के किनारे इस के,
ये जो सहरा है मैं तर जाऊँगा।