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आज जाने की ज़िद ना करो / सुस्मिता बसु मजूमदार 'अदा'
Kavita Kosh से
वो मेरे घर का छोटा सा कोना
जो मुझे सबसे पसंद है
चलो आज मैंने वो
तुमको दिया।
वो मेरी चादर
कंपकँपाती सी ठण्ड में
जो तुम्हारे होने का एहसास दिलाती है
चलो आज मैंने वो
तुमको दिया।
वो मेरे सीधे काले लम्बे बालों में से झांकता
इक इकलौता सफ़ेद
चलो आज मैंने वो
तुमको दिया।
वो जो सिन्दूरी सूरज
हमने देखा था साथ
और सबने कहा था
डूबते सूरज को साथ न देखना
चलो वो सिन्दूरी रंग, आज मैंने
तुमको दिया।
वो सारे, टेढ़े-मेढ़े, सच्चे-झूठे रिश्ते
जो तुम्हारे साथ आये थे बंधकर
उनमें से खटास रखकर
बाकी सब एहसास, अब...
तुमको दिया।
वो ठंडी से आह, माथे पे हल्की सी शिकन
वो जीने की चाह, और मेरी ओर बढ़ते, काले कदम
वो आह मैंने रख ली संजो कर और चाह
तुमको दिया।